मैं सूर्य, मैं रवि, मैं ही प्रभाकर..
मुझे पूजते तुम सुबह शाम निरंतर
पर क्या किसी ने मेरा दर्द जाना है ?
फ़िक्र नहीं जलता रहता हूँ,
हर आँगन की रौशनी के लिए...
पर रो रहे हैं जो मेरे अपने,
अँधेरे बंद कमरों में बैठ के
उनके दरवाजे खिड़कियाँ
खुलवा नहीं सकता ...
उनके जीवन में ..
उजाला ला नहीं सकता ..
जल जायेंगे वो मुझसे
मैं पास जा नहीं सकता...
कैसी बेबशी है मेरी !!
अपनों की ख़ुशी छोड़ो
गम का भी साँझा प़ा नहीं सकता ...
नोट: साँझा - हिस्सा
मुझे पूजते तुम सुबह शाम निरंतर
पर क्या किसी ने मेरा दर्द जाना है ?
फ़िक्र नहीं जलता रहता हूँ,
हर आँगन की रौशनी के लिए...
पर रो रहे हैं जो मेरे अपने,
अँधेरे बंद कमरों में बैठ के
उनके दरवाजे खिड़कियाँ
खुलवा नहीं सकता ...
उनके जीवन में ..
उजाला ला नहीं सकता ..
जल जायेंगे वो मुझसे
मैं पास जा नहीं सकता...
कैसी बेबशी है मेरी !!
अपनों की ख़ुशी छोड़ो
गम का भी साँझा प़ा नहीं सकता ...
नोट: साँझा - हिस्सा